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हिंदी सिनेमा के ही-मैन की अनकही जीवनी

 धर्मेंद्र की जीवनी सिर्फ एक करियर की कहानी नहीं ...... 

धर्मेंद्र यंग लुक फोटो  

          भारतीय हिंदी सिनेमा का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, तो "धर्मेंद्र " वह नाम है जिसे किसी एक खांचे में बांधना संभव नहीं। वह सिर्फ एक अभिनेता नहीं - एक एहसास है,एक दौर है,एक जज्बा है जिसने हिंदी फिल्मों के रोमांस ,एक्शन और पारिवारिक संवेदना को ऐसा आकार दिया कि उसकी छाप पीढ़ियों तक दिखाई देती है। 

         राजकपूर के बाद यदि किसी अभिनेता की सादगी ने आम दर्शक को अपनी ओर खींचा, और अमिताभ बच्चन के उभरने से पहले यदि किसी ने देसी मर्दानगी का सबसे प्रामाणिक चेहरा पेश किया, तो वह धर्मेंद्र ही थे। 

         उनका व्यक्तित्व किसी पहाड़ी झरने की तरह पवित्र था,चेहरा किसी देसी हीरो जैसा सुगंधित और आँखे दर्शकों को अपने भीतर खिंच लेती थी। 

         धर्मेंद्र की कहानी संघर्ष, संवेदना, सफलता और संस्कारों की लम्बी यात्रा है, जिसने उन्हें न केवल पर्दे पर बल्कि असल जिंदगी में भी एक 'लार्जर देन लाइफ 'पहचान दी। 

धर्मेंद्र का चाइल्डहुड फोटो 

   धर्मेंद्र  का प्रारंभिक जीवन : पंजाब की मिट्टी से निकला नायक

              धर्मेंद्र का जन्म 8 दिसम्बर 1935 में पंजाब के फिरोजपुर जिले के नसराली गांव में हुआ। उनका असली नाम धरम सिंह देवल है।खेती -बाड़ी करनेवाले परिवार, प्रेम की सीख लेकर बड़े हुए। धर्मेंद्र का जीवन स्कूल से कॉलेज तक, किताबों से ज्यादा उनका मन फिल्मों के पोस्टरों और पर्दे पर चमकते चेहरों में रम जाता था। उनका पिता स्कूल में हेडमास्टर थे और परिवार अनुशासन तथा ईमानदारी का पक्का था। यही संस्कार बाद में धर्मेंद्र के फ़िल्मी सफर का आधार बने।  

                 ही मैन धर्मेंद्र ने खुद को एक साधारण, शर्मिले लेकिन स्वप्नों से भरे नौजवान के रूप में देखा, जो कभी समझ नहीं पाता था कि उसके भीतर इतनी गहरी बेचैनी क्यों है। धर्मेंद्र की स्ट्रगल स्टोरी में फिर एक दिन फिल्मफेयर टैलेंट हंट में हिस्सा लिया और किस्मत ने उन्हें मुंबई बुला लिया। यह वह समय था जब फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश आसान नहीं था। लेकिन धर्मेंद्र के करियर जर्नी के भीतर वह आग थी ,जिसने उनके शरीफ चेहरे के पीछे जूनून को ईंधन दिया। 

धर्मेंद्र के संघर्ष के दिन : भूक, बेबसी और सिनेमा -   

                मुंबई पहुंचने के बाद धर्मेंद्र ने वह सब झेला जो एक स्ट्रगलर युवा झेलता है, किराया, काम की अनिश्चिंतता, ऑडिशन की कतारें और अपने सपनों को टूटते देखने का डर। लेकिन धर्मेंद्र का हौसला कभी नहीं टुटा। वे हर सुबह आर. के. स्टूडियो, बांद्रा के महबूब स्टूडियो कहीं भी पैदल चले जाते -बस इस उम्मीद में कि किसी ने उन्हें नोटिस कर लिया तो ?

धर्मेंद्र के संघर्ष के साक्षी स्टूडियोज 

             उनका चेहरा अलग था, आकर्षक,पर ज्यादा ' ग्लैमरस ' नहीं। वे देसी मिट्टी की खुशबू लिए हुए थे और शायद यही खासियत थी, जिसने निर्देशक अरविन्द सेन और बिमल रॉय जैसे लोगों की नज़रों को खींचा। 

            धर्मेंद्र एक्टर के इतिहास की पहली बड़ी फिल्म " दिल भी तेरा हम भी तेरे [1960 ] थी। इससे भले ही रातों -रात सफलता नहीं मिली, लेकिन इंडस्ट्री ने नोटिस जरूर कर लिया की यह लड़का सिर्फ सुन्दर नहीं है, इसमें तो दम  है।          

धर्मेंद्र मूवी पोस्टर 

         

 धर्मेंद्र के करियर यात्रा का आरंभ - जेंटल लुक वाली आँखों में दिखाई दी मर्दानगी                                   

              1960 के दशक में रोमांटिक और सामाजिक फिल्मों से शुरुवात की, फ़िल्में  "अनपढ़ ", " बंदिनी ", " आये दिन बहार के ", "अनुपमा "और "सत्यकाम " इन फिल्मों ने उन्हें एक ' संवेदनशील प्रेमी ' की छवि दी। लेकिन दर्शकों में जिस की कमी थी , वह थी एक ऐसा हीरो जो नाजुक न दिखे - लेकिन ओवर हाइप्ड भी न हो। 

                धर्मेंद्र ने यह खालीपन भर दिया। उनमे आकर्षण था, ताकत थी, परन्तु एक अजब सी संकोची मासूमियत भी थी। यही उनकी ' मर्दाना सादगी ' हिंदी सिनेमा के लिए बिलकुल नई थी।  

      1]   धर्मेंद्र फैक्ट्स में : वे एक्शन के उस्ताद , रोमांस के बादशाह फिल्म "अनुपमा ", " चुपके - चुपके", "शिकार", "अनुराग "में जया भादुड़ी के साथ उनके दृश्यों ने बताया कि रोमांस हमेशा नजरों और संवदनाओं से पैदा होता है। संवाद तो सिर्फ माध्यम होते है। 

       2] एक्शन का स्वाभाविक रौब - ही - मैन ऑफ बॉलीवुड का टैग यूँ ही नहीं मिला। उनका शरीर , देहभाषा और गुस्से का स्टाइल इतना नेचुरल था कि एक्शन फ़िल्में लिखते समय लेखक मन में सबसे पहले धर्मेंद्र को ही सोंचते होंगे। फिल्म " फूल और पत्थर ", " रेशम की डोरी ", " जिगर मुरादाबादी " के किरदारों ने उन्हें एक्शन स्टार बना दिया। 

      3]  कॉमेडी की सहजता -  फिल्म " चुपके -चुपके " में सुकुमार का किरदार आज भी हिंदी सिनेमा के सबसे प्यारे कॉमिक रोल में गिना जाता है। उनकी टाइमिंग, उनकी मुस्कान और उनका मासूम -सा अभिनय उन्हें हर रोल में फिट बनाता था।                                          

                                 धर्मेंद्र और हेमा मालिनी सीन 
    शोले और धर्मेंद्र : एक अमर पहचान -  

      धर्मेंद्र और हेमा मालिनी 1975 की फिल्म " शोले  " सिर्फ फिल्म नहीं, एक भावनात्मक विरासत है और इसमें ' वीरू ' का किरदार धर्मेंद्र के करियर की सबसे यादगार पहचान बन गया। उनकी कॉमिक टाइमिंग, रोमांस और ऊर्जावान संवाद।  यह सब इतना स्वाभाविक था कि लगता ही नहीं था कि कैमरे के सामने कोई अभिनय कर रहा है। 

        " बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना !" यह संवाद आज भी भारतीय फिल्मों का स्थायी हिस्सा है।  

   धर्मेंद्र मूवीज  " सत्यकाम " और " अनुपमा " जैसी कालजयी फ़िल्में                 धर्मेंद्र को अक्सर एक्शन हीरो समझा गया, जबकि सच्चाई यह है कि उनकी सबसे श्रेष्ठ अभिनय क्षमता इन फिल्मों में दिखती है - 

   A] " सत्यकाम " 1969 : - बिमल रॉय स्कूल की गंभीरता लिए, यह धर्मेंद्र की करियर बेस्ट परफॉरमेंस मानी जाती है। एक ऐसे युवक की कहानी जो ईमानदारी और आदर्शों के बीच पिसता जाता है - धर्मेंद्र ने इसे इतना प्रामाणिक बनाया कि आज भी सिनेमा के विद्यार्थी इसे पढ़ते है। 

  B] " अनुपमा " 1966 : - संवाद कम, भावनाएँ ज्यादा। धर्मेंद्र का शांत संवेदनशील कवी जैसा व्यक्तित्व उनके रोमांटिक इमेज को नई ऊंचाई देता है। 

धर्मेंद्र की इमोशनल स्टोरी :   राजनीति, व्यापार और परिवार, एक संस्कारी इंसान की सरल जिंदगी। धर्मेंद्र ने भले ही राजनीति में हाथ आजमाया हो, लेकिन वे हमेशा स्टूडियो के कलाकार, खेतों के किसान और परिवार के मुखिया ही रहे।                                          

धर्मेंद्र की पर्सनल लाइफ 

                  वे अपने बच्चों, सनी,बॉबी,ईशा और अहाना सभी में कलाकार  के साथ - साथ इंसान को प्रार्थमिकता देते रहे। धर्मेंद्र की खूबसूरती सिर्फ उनके चेहरें में नहीं, बल्कि उनके दिल में थी। 

                  उनका जीवन ग्लैमर से ज्यादा सादगी में बसा था - पंजाब के खेत, लस्सी, गांव, लोग और परिवार, ये सभी वह चीजें है जो उन्हें जमीन से जोड़े रखती थी।  

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   धर्मेंद्र  बॉलीवुड करियर का विश्लेषण : पुरस्कार और उपलब्धियाँ - 

  • फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड। 
  • राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्मों का हिस्सा। 
  • पद्मभूषण [2012] 
  • उनकी फिल्म " फूल और पत्थर " उस दौर की सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्मों में से एक। 
  • 100 से अधिक सफल फ़िल्में। 

                      हिंदी सिनेमा में सबसे लम्बे समय तक लोकप्रिय रहनेवाले अभिनेताओं में से एक। वे उन कलाकारों में शामिल है जिन्हे सिनेमा ने कभी भुलाया नहीं और शायद कभी भूल भी नहीं पायेगा। 

                       धर्मेद्र सिर्फ 60 - 70 के दशक के सुपरस्टार नहीं थे, वे एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने भारतीय भावनाओं को फिल्मों में उतारा उनके अभिनय में दिखती सादगी, उनकी आँखों की मासूम चमक और उनकी देहभाषा की मर्दानगी - इन सबने मिलकर उन्हें हिंदी फिल्मों का ' परफेक्ट ' हीरो बना दिया। 

                       



    

                  

    



              

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