स्वाधींनजी की गजलें
१ ]
नहीं जाने हकीकत फिर ये दो नजरें भी प्यारी क्या।
रही है खुद से ही अब तक यहां दूरी हमारी क्या।
बनी है खाक से दुनियाँ ये सोने की अटारी क्या।
कि पिंजरा तोड़ के भागेगा तोता इस से यारी क्या।
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पिंजड़े में तोते |
निभाने में लगी निस दिन की है ये मारा मारी क्या।
जो दिल पर बोझ है अपने भी यारो इतना भारी क्या।
जो रस्ता मिल गया तुझ को,खुदी में अब ठिकाना कर
लगी है लौ तो अब इस से भी है बचने की बारी क्या।
जमाना घर है तिनकों का बिखर जायेगा पलभर में।
खड़ी है अँधियां दर पर , हवाओं की सवारी क्या
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२ ]
२ ]
उतर रही है छ्त से अपनी कैसी गोरी गोरी धूप।
आंगन आंगन दौड़ पड़ी है गांव की अल्हड़ छोरी धुप।
बारिश की बूंदों ने बदला मौसम का लहजा लेकिन
ऊँचे पेड़ों पर बैठी है अब भी कोरी कोरी धुप।
बाँट रही है खस के पंखे , भीगी चादर इत्र फुलेल
खोल रही है घर घर जाकर अपनी आज तिजोरी धुप।
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सूर्य का तेज प्रकाश |
माँ के सीने से लिपटे बच्चे को दूध पिलाती सी
पंखा झलती सी दोपहरी , गाती सी इक लोरी धुप।
चिलम चढ़ाये शाम धुएं को आँखो में छितराति सी
पेड़ के नीचे बैठ गई है जाती हुई अघोरी धुप।
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३ ]
साथ हमारे जो सायें है हम से खफा हो जायेंगें
शाम हुई तो चलते चलते ये भी जुदा हो जायेंगें ,
मेरे दिल अंगारे दहके किसी रोज भी तेरे नाम
तेरे नाम से वैर है जिनको मुझ से खफा हो जायेंगे।
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गर्मी से निजात दिलाता ढलता सूरज |
छंट जायेगा घोर अँधेरा इंकलाब की रातों में
सुर्ख सवेरे पर दुनिया के लोग फ़िदा हो जायेंगें।
जितना खोया उतना पाया हासिल है ये खाली हाथ
मजलूमों के हक़ में लड़ते लड़ते फ़ना हो जायेंगें।
आज जमाना गौर से सुनता है अपनी बातें लेकिन
ये नगमे आने वाली नस्लों की सदा हो जायेंगें।
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