[ थोड़ी ही देर में सभी डॉक्टर के पास जाने के लिए निकल पड़े । महेश ने क्लिनिक के निकट अपनी कार रोक दी । अमित सीधे यही आनेवाला था । महेश तथा नेहा मोना को लेकर क्लिनिक के भीतर चले गए । आशा तथा तन्या कार में ही अमित की प्रतीक्षा में बैठी रही । ]             

                                                                                             अब आगे               

       डॉक्टर के केबिन में पहुंचकर  विश करने की औपचारिकता होते ही डॉक्टर ने मोना की जांच शुरू कर दी । मोना -'' डॉक्टर अंकल , मेरा सिर बहुत दर्द कर रहा था और मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा था । '' ठीक है बेटी हम अभी जांच करेंगे और बीमारी का पता लगाकर उसे भगा देंगे । काफी देर तक जांच करने के पश्चात डॉक्टर ने कहा - '' हमारी बेटी को तो कोई बीमारी नहीं है । बस ! कमजोरी अधिक है । उसके लिए मै टॉनिक लिख देता हूँ । डॉक्टर की बात सुनते ही नेहा तथा महेश में  जान में जान आ गई । दोनों के चेहरे भी खिल उठे सवेरे से मन पर सवार टेंशन रफू चक्कर हो चूका था । डॉक्टर , महेश से कंस्ट्रक्शन सम्बन्धी कुछ सलाह ले रहे थे ।  नेहा तथा मोना डॉक्टर साहब को बाय कर आशा को खुश खबरी देने बाहर निकल पड़ी । उनके जाते ही डॉक्टर साहब ने कहा -  ' महेश , एक बार मोना की जांच किसी अच्छे मनोचिकित्सक से करानी चाहिए । कारण मुझे यह मामला कुछ और ही लगता है । वैसे घबराने की बात नहीं है ।

           नेहा और आशा काफी देर से महेश के आने की प्रतीक्षा कर रही थी । अमित, तन्या और मोना को आइसक्रीम दिलाने पास ही के दुकान में ले गया था । आखिरकार नेहा ने महेश को कॉल किया । फ़ोन की आवाज सुनकर डॉक्टर ने अपनी बात को खत्म करते हुए कहा - ' मै कल ही मोना के जांच के रिपोर्ट  तथा एक्सरे उन्हें भेज देता हूँ । ''

         महेश डॉक्टर के क्लिनिक से बाहर आते ही वह अमित से मिला । दोनों ने किस होटल में डिनर करेंगे यह तय किया । अमित ने ड्राइविंग करने की बात कहते ही महेश ने कार की चाबी अमित को सौंप दी । 

                दोनों परिवारों ने हंसी मजाक के बीच डिनर किया । परन्तु महेश वहाँ शारीरिक रूप से तो मौजूद था , लेकिन वह मन से कहीं और है । यह नेहा के ध्यान से नहीं छूटा था । सभी अपने अपने घरों को जाने निकल पड़े । अमित तथा आशा को  उनके घर के पास छोड़कर महेश तथा नेहा अपने घर की ओर निकल पड़े ।  रास्ते भर महेश गुमसुम ही था । यह देख नेहा ने ही अपना मौन तोडते हुए पूछा - '' महेश , तुम क्लिनिक से निकले, तब से तुम्हे मै देख रही हूँ । तुम कौन से विचारों में खोये हुए हो ? डॉक्टर ने मोना के बारे में तो कुछ नहीं कहा न ? ''  

                   नेहा के बात करने पर तब कहीं महेश विचारों के उधेड़बुन से जैसे लड़खड़ाता हुआ बाहर आया । नेहा की ओर देखता हुआ बोला - ''  नेहा पहले हम घर पहुंचते है ।फिर मै तुम्हे विस्तार से सब कुछ बताऊंगा । पुनः अपनी सूरवी नजरे सुनसान सड़क पर टिकाए गाड़ी चलाने लगा महेश की बात सुनकर अब नेहा भी विचारों के बवंडर  मे फंस गयी । गाड़ी कब सोयायटी के प्रांगण में पहुंची , इसका नेहा को पता ही न चला । मोना को जगाकर  उन दोनों को अपने फ्लैट में जाने के लिए कहा और वह अपनी कार पार्किंग में रखने  चला गया । 

               महेश लौटा तो नेहा ड्राइंग रूम में ही उसकी प्रतीक्षा में बैठी थी । महेश के आगे पानी की बोतल थमाते हुए प्रश्नार्थक नजरों से उसे देख रही थी । '' अरे बाबा , थोड़ा सबर तो करो । मुझे पानी दो । '' पानी की बोतल टेबल पर रख दी और वह स्वयं भी सोफे पर बैठ गया ।

             '' नेहा आज जो डॉक्टर ने कहा उसी बात से मै परेशान हो गया हूँ । वैसे घबराने की कोई  बात नहीं है ''. आख़िर डॉक्टर साहब ने ऐसा क्या कहा - जिससे तुम्हे सोंचने के लिए मजबूर होना पड़ा । '' देखो नेहा पहले तुम मुझे वचन दो की तुम वह बात सुनकर परेशान नहीं होंगी  । तभी मैं तुम्हे  सबकुछ बता दूंगा । '' नेहा-''मैं  वचन देती हूँ । ''

               नेहा के वचन देते ही महेश ने डॉक्टर को किस बात की शंका है यह बताया। यह सुनते ही नेहा को रोना आ गया। महेश - '' देखो नेहा इसमे घबराने की कोई बात नहीं। अभी डॉक्टर ने केवल अपनी शंका व्यक्त की है. कल मोना के सारे रिपोर्ट स्पेशालिस्ट के पास भेजने वाले है । उसकी जाँच के पश्चात ही डॉक्टर हमे सही तथ्य बता पायेंगे । '' चलो कुछ देर तो सो जायेंगे , अब कुछ ही देर में मुर्गा बांग  देगा ।   

              सवेरे दस बज रहे थे । नेहा - महेश अभी भी नींद के आगोश में जकड़े हुए थे । मम्मा मम्मा की आवाज कांनो पर पड़ते ही नेहा बौखलाकर उठ बैठी । देखा तो मोना दोनों के लिए चाय के प्याले ले आई थी । ' गुडमॉर्निंग मम्मा , यह लीजिये आपकी चाय ।'' नेहा - '' बेटे तुमने चाय बनाई है ? '' मोना - '' हाँ , मम्मा रोज आप मुझे जगाती हो  और दूध पिलाती हो । मैंने सोंचा आज मै तुम्हे और पापा को बेड टी दूंगी । सो मैंने चाय बनाई । मम्मा ! पापा को भी प्लीज जगाइए न । 

               दोनों की बातें सुनकर महेश भी जाग गया ।  महेश - '' मोना तुमने चाय तो बहुत बढ़िया बनाई है । तुम्हारी मम्मी भी इतनी अच्छी चाय नहीं बनाती।  '' नेहा - '' चलो महेश , आज तो तुमने ऑफिस को गुठली मरी है । तुम तो दिनभर यूँ  ही सुस्ताते रहोगे । मेरे लिए तो घर का सारा काम पड़ा है । ''  महेश चाय की चुस्कियां लेते हुए मोना से हंसी महक कर रहा  यह देख नेहा किचन का काम निपटाने चली गई । 

                            महेश  का मोबाइल बज रहा था । आवाज सुनकर नेहा ने आक कर देखा तो महेश खुर्राटे भर रहा था , मोना खेलने भाग गई थी । आखिरकार उसने ही मोबाइल उठाया तो सामने से डॉक्टर वर्मा बोल रहे थे - '' हेलो महेश। , उनकी बात होते ही नेहा ने कहा - '' नमस्ते डॉक्टर साहब , मै नेहा बोल रही हूँ ।  महेश सो रहे है  क्या मै उन्हें जगाऊँ ? '' वर्मा - '' नहीं नहीं  उन्हें केवल एक मेसेज दीजिये की आज शाम 7 बजे स्पेशालिस्ट के पास जाना है । '' इतना कहकर मोबाइल काट दिया । ''    

                            महेश  के उठते ही नेहा ने डॉ वर्मा का सन्देश उसे दिया । उस समय शाम के पांच बज रहे थे । `मोना अभी भी अन्य बच्चों के साथ सोसाटी के प्रांगण में खेल रही थी ।  महेश अपने ऑफिस का काम निपटारा था । नेहा तीनो के लिए नाश्ता बनाने में व्यस्त थी । तभी कॉल बेल घनघनाई महेश ने दरवाजा खोला तो सामने सोसाइटी में रहनेवाली कंचन भाभी खड़ी थी । महेश - '' आइये आइये '' कहते हुए नेहा को आवाज लगाई । 

                          महेश की आवाज सुनकर नेहा भी बाहर आ गई । महेश ने अपना लैपटॉप उठाया और भीतर जाने लगा । भाभी - ''  भाई साहब , आप बैठिये वैसे आप दोनों को ही मै कुछ बताना चाहती हूँ । '' महेश ने प्रश्नार्थक नजरों से नेहा की ओर देखा नेहा ने इशारे से ही उसे बैठने कहा । 

                     '' नेहा भाभी ! अभी मै सोसयटी के प्रांगण में ही थी , जहां सारे बच्चे खेल रहे थे ।  मै उनका खेल देख रही थी । तब मेरी नजर मोना पर पड़ी । मैंने पास जाकर उसे पूछा  - क्या मोना बेटी तुम नहीं खेल रही हो ? इन बच्चों के साथ । तब आपको पता है मोना ने मुझे क्या जवाब दिया  - '' आंटी मै मोना नहीं हूँ , मेरा नाम तो नजमा हूँ । इन बच्चों को तो मै जानती भी नहीं । यह सुनकर मुझे बड़ा अचरज हुआ है ।  इसलिए  मै दौड़ते हुई यहां आई हूँ  ।